मैं खुद से खुद की पहचान छुपाने लगी,
जीन एहसासों को लब्ज़ों में पिरोया करती थी कभी,
अब उन्ही एहसाओं को दिल में दबाने लगी,
कभी परछाई को पकड़ती मैं,
कभी खुद से बिखरती, सवरती मैं ,
इस रंग बदलती दुनिया में,
बेरंग होना अच्छा है,
उठ उठ के अकेली रातों में
खुद को समझने लगी
जिसकी बातों से मुस्कुराना लाज्मी था मेरा
अब उसी की बातों के अश्को को पलकों में दबाने लगी
वक्त ने यह करवट ली भी कैसी ,
मैं खुद से खुद की पहचान छुपाने लगी ,
अमृता भाटी
5/4/2020
No comments:
Post a Comment